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पिता / Pitaa
( पापा पर कविता )

जिस पेड़ की छांव में ज़िन्दगी गुज़ार दी हमने उसने कभी शिकायत नहीं की मौसम बदलते रहे कड़कती धूप, भयानक तूफान और कई सर्दियाँ मगर वो खड़ा रहा, इसलिए के उसके पास कोई विकल्प नहीं था वो पिता उस पेड़ सा आज भी खड़ा है छाँव दे रहा है उसकी क्षमताएं जवाब दे चुकी हैं लेकिन अपने दर्द छुपाकर वो ज़िन्दगी से आज भी लड़ रहा है ! जिसके कन्धों पे दुनिया देखी थी मैनें, उन्हीं कन्धों ने ताउम्र बोझ उठाया कहते हैं माँ 9 महीने पेट में बोझ उठाये रखती है लेकिन उम्र भर जो दिमाग में ढोता है वो पिता होता है, सबके सामने जो लबों पे मुस्कान रखता है असल में जो दिल से रोता है वो पिता होता है जिसके होने से घर में रौनक होती है और ना हो तो अँधेरा होता है वो पिता होता है जिसका होना उसके घर का सवेरा होता है ! कोई किताब एक पिता की कहानी को कभी मुकम्मल नहीं कर सकती पिता वो शख्स है जो अपने परिवार की नाव को कभी डूबने नहीं देता पिता वो शख्स है जो अपने सपने रौंदकर अपनों की ख़ुशी का ख्याल रखता है जिसकी मौजूदगी, उसके बच्चों का गहना होता है पिता वो शख्स है जो खुद टूटकर, अपनों की हिफाज़त करता है कोई किताब एक पिता की कहानी को कभी मुकम्मल नहीं कर सकती, बस चंद लफ़्ज़ों में उसकी तारीफ कर सकती है ! मैं उनसे हमेशा खिलौनों की ज़िद्द करता रहा लेकिन इससे भी बढ़कर उनका घर आना मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफा होता दिल में एक अलग ही उत्साह होता, सबसे कहता आज मेरे पापा आये हैं अपने ही घर में वो मेहमान बनकर आते, कुछ दिन रुकते और चले जाते मुझे उनके आने का हमेशा इंतज़ार रहता ! आज पिता की तारीफ के लिए मेरे पास कोई अलफ़ाज़ नहीं है पिता शब्द अपने आप में ही एक दुनिया है जिसने मुझे लिखा है मेरी क्या मजाल मैं उसको लिखने की कोशिश भी करूँ घर के हालातों ने कभी मौका नहीं दिया की इत्मिनान से बैठकर उनसे बातें कर सकूँ, उनकी कहानी सुन सकूँ कुछ किस्से माँ से सुनें है अब इंतज़ार है उनकी ज़बानी सुनूँ ! एक सेहर उनकी तबियत भारी थी कैसे कहते बीमार हूं मैं, घर की ज़िम्मेदारी थी बिस्तर से उठे और उसी हालत में काम पर गए हम खुश रह सकें, इसलिए वो शख़्स सब कुछ झेल जाता है खुद की परवाह किये बिना हर विघ्न में लड़ जाता है दुनिया का अमीर से अमीर शख्स भी बगैर पिता के गरीब है, उसकी कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता ! मेरा जीना व्यर्थ होगा, अगर मैं उनका सहारा ना बन सका मेरा जीना व्यर्थ होगा, अगर मैं उनके सपने पूरे ना कर सका ! ज़िन्दगी से जंग लड़ना उन्होंने मुझे बखूबी सिखाया है मेरा जीना व्यर्थ होगा, अगर उनकी सीखाई बातों को मैं जीवन में उतार ना सका ! पिता वो पेड़ है जिसकी शाखाओं में झूला झूला है हमने, जिसके कन्धों पे ये जहाँ देखा है हमने वो है तो हम हैं, वो नहीं तो हम भी नहीं ! 2

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पिता / Pita - by Sachin Kumar
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Written By - Sachin Kumar

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